पूंजी को कलंक न समझें (बिजनेस स्टैंडर्ड)

भारत में टीकाकरण की प्रक्रिया पहले ही विलंब से चल रही है। 18 से 44 वर्ष की उम्र के लोगों का टीकाकरण शुरू करने के बाद टीकाकरण की गति और धीमी हुई है। इसे बढ़ाने यानी वितरण अथवा आपूर्ति बेहतर करने के लिए सरकार को निजी क्षेत्र के साथ बेहतर साझेदारी करनी होगी। बहरहाल लग रहा है कि निजी कंपनियों के बारे में हमारी पुरातन सोच इस प्रयास की राह में आड़े आ रही है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के प्रमुख अदार पूनावाला ने हाल ही में द टाइम्स ऑफ लंदन को दिए साक्षात्कार में कहा कि उन्हें राजनेताओं समेत कई जगह से 'आक्रामक' फोन आ रहे थे। माना यही जा रहा है कि वह आरोप प्रत्यारोप से बचने तथा खलनायक की तरह पेश किए जाने से निजात पाने के लिए ब्रिटेन चले गए।

इस बीच विपक्षी दल एसआईआई तथा दूसरी टीका विनिर्माता कंपनी भारत बायोटेक पर 'मुनाफाखोरी' का इल्जाम लगाने लगे क्योंकि उन्होंने खुले बाजार में टीकों की बिक्री के लिए कीमत थोड़ी बढ़ाकर पेश की। पूनावाला ने ट्विटर पर दिए गए अपने दूसरे वक्तव्य में कहा कि वह लगातार सरकार के साथ संपर्क में थे और उन्हें सरकार से उल्लेखनीय समर्थन भी मिला। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि टीका उत्पादन बढ़ाने में समय लगेगा। इस सवाल का जवाब नहीं मिल सका कि टीकाकरण शुरू करने के पहले उत्पादन में इजाफा क्यों नहीं किया गया।


पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने एक बार कहा था कि देश में निजी निवेश से जुड़ी एक अहम समस्या यह रही कि पूंजी को गलत माना गया और निजी निवेशकों को संपत्ति निर्माता के बजाय समस्या के रूप में देखा गया। हमारी राजनीति और नीतियों ने भी मुनाफे की प्रवृत्ति को आम बेहतरी का जरिया बनाने के बजाय उसके साथ विपरीत रिश्ता कायम करने की प्रवृत्ति दिखाई। देश में टीका विनिर्माण को लेकर सामने आई समस्या पूंजी को गलत दृष्टि देखने के नकारात्मक परिणामों का सटीक उदाहरण है। यदि एसआईआई और अन्य कंपनियों को टीकाकरण को एक लाभकारी कारोबार के रूप में आगे बढ़ाने की इजाजत दी जाती तो इससे न केवल निवेश आकर्षित होता बल्कि देश भर में टीकाकरण की गति बढ़ाने में भी मदद मिलती। परंतु इसके बजाय ऐसा माहौल बनाया गया कि राजनेता टीका विनिर्माताओं को परेशान करने लगे कि उनके राज्य को प्राथमिकता दी जाए। इस बीच केंद्र सरकार को लगा कि वह भी इन्हें परेशान करके कम दाम पर टीका देने पर मजबूर कर सकती है। टीका निर्माताओं द्वारा राज्यों और निजी अस्पतालों के लिए टीकों की नई कीमत निर्धारित करने के बाद केंद्र ने दखल दिया और उनसे कहा कि वे कीमत कम करें। ऐसा हस्तक्षेप अनुचित है।


टीकों में निवेश और निवेशकों के साथ व्यवहार को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए। सरकार के साथ सहयोग करने वाली निजी कंपनियों को मुनाफा कमाने देना चाहिए वरना वे सरकार से समझौता नहीं करेंगी। अतीत में कई बुनियादी क्षेत्रों में ऐसा हो चुका है। पूनावाला के साक्षात्कार ने दुनिया को बता दिया कि भारत में उद्यम चलाने में क्या दिक्कतें हैं? आपको डराया जाता है। सरकार का काम है उद्यमों और उद्यमियों की रक्षा करना न कि उन पर दबाव बनाना। आशा की जानी चाहिए कि टीकाकरण में आई दिक्कतों से यह सबक मिला होगा कि निजी क्षेत्र के साथ बेहतर रिश्ता और पूंजी के साथ उचित व्यवहार करके ही किफायत, निवेश और वृद्घि हासिल की जा सकती है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा था कि अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की भूमिका अहम है और इस क्षेत्र को प्रताडि़त करने की संस्कृति अब स्वीकार्य नहीं होगी। हर किसी को इस राय का पालन करना चाहिए।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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