चीन की वैज्ञानिक शक्ति (बिजनेस स्टैंडर्ड)

बीते 10 दिन में चीन ने दो बार अपनी तकनीकी क्षमताओं का प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। उसने एक नए अंतरिक्ष केंद्र को कक्षा में स्थापित किया और एक रोवर को मंगल ग्रह पर उतारा है। अंतरिक्ष केंद्र के मॉड्यूल को लेकर गए लॉन्ग मार्च 5 रॉकेट को अनियंत्रित ढंग से गिरने देकर उसने अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रति अपनी अवमानना भी जाहिर की। शानदार वैज्ञानिक उपलब्धियां और अंतरराष्ट्रीय मत की अवमानना करना चीन की विशेषता रही है। वह दुनिया के साथ ऐसा ही बरताव करता है। माओत्से तुंग के चीन का नेतृत्व करने के समय से अब तक काफी बदलाव आ चुका है। परंतु चीन ने लगातार वैज्ञानिक क्षमताएं हासिल करने का सिलसिला जारी रखा। सन 1960 के दशक में उसने परमाणु हथियार बनाए और अब वह जेनेटिक इंजीनियरिंग से लेकर, उच्चस्तरीय भौतिकी, क्वांटम कंप्यूटिंग और संचार, कृत्रिम मेधा तथा तंत्रिका विज्ञान जैसे विविध क्षेत्रों में अग्रणी बना हुआ है। इन क्षेत्रों में अहम उपलब्धियों के गहरे निहितार्थ हैं। चीन में होने वाला नवाचार भविष्य को आकार देने वाला साबित हो सकता है। यकीनन जेनेटिक शोध और कृत्रिम मेधा के क्षेत्र मेंं होने वाली नई खोज मानव होने के बारे में हमारी नैतिक समझ को तब्दील कर सकती हैं। 


चीन को गैरकानूनी ढंग से बौद्धिक संपदा हथियाने में भी कभी कोई समस्या नहीं हुई या फिर उसने अपनी रेयर अर्थ पॉलिसी (मूल्यवान धातुओं से संबंधित) के माध्यम से जबरन तकनीक हस्तांतरण जैसे कदम भी उठाए। परंतु सांस्कृतिक क्रांति की शिक्षा विरोधी भयावहता से निजात पाने के बाद चीन ने उत्कृष्ट वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थान भी स्थापित किए। तंग श्याओफिंग के कार्यकाल में विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणितीय (एसटीईएम) क्षमताओं पर जमकर काम हुआ। तंग श्याओफिंग ने बाजार साम्यवाद की स्थापना की जहां पार्टी प्रभारी रहेगी, वह संसाधनों पर नियंत्रण करेगी लेकिन संपत्ति निर्माण को बढ़ावा दिया जाएगा। ऐसे में उपरोक्त चारोंं विषयों के ज्ञान का वाणिज्यीकरण हो सकता था। यह तरीका सोवियत मॉडल से बेहतर था जहां वाणिज्यिक अवसरों की अनदेखी की जाती। 


सन 1990 के मध्य तक चीन विनिर्माण का गढ़ बन गया था। उसने श्रम की उपलब्धता की बदौलत वस्तु निर्यात का एक बड़ा बाजार तैयार किया। उसने संबंधित बौद्धिक संपदा भी हासिल की। जहां तकनीक स्थानांतरित नहीं हो सकी वहां हैकरों ने संवेदनशील सामग्री जुटाई। चीन में जमकर शोध भी होता रहा। चीन ने ऐसे युद्धपोत और लड़ाकू विमान बनाए हैं जो दुश्मन से छिप सकते हैं। वह कक्षा में मौजूद उपग्रह को नष्ट कर सकता है। वह लाखों स्मार्ट फोन बनाता है, बंदरगाह बनाता है, दूरसंचार नेटवर्क तैयार करता है, सड़क और पावर सिस्टम तैयार करता है। 


वहां शोध और विकास एक बहुकोणीय व्यवस्था से उत्पन्न होता है। चीन की वैज्ञानिक अकादमी 120 से अधिक ऐसे संस्थानों की निगरानी करती है जहां वैज्ञानिक शोध होते हैं। वहां विभिन्न मंत्रालयों के अधीन भी शोध संस्थान हैं। ऐसे विश्वविद्यालय भी हैं जहां औद्योगिक संस्थानों के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है और वे अपने शोध भी करते हैं। अनुमानों के मुताबिक कंपनी आधारित  शोध विकास का 80 फीसदी हिस्सा एसटीईएम में निवेश किया जाता है। रक्षा शोध एवं विकास प्रतिष्ठान अन्य क्षेत्रों से मदद लेता है और चीन की सेना भी बाहरी शोध को वित्तीय मदद देती है। 


इस पूरी प्रक्रिया में मुनाफा भी होता है और यह चीन के नीति निर्माताओं की वैचारिक अनिवार्यताओं के भी अनुकूल है। चीन केवल ऐसी महाशक्ति नहीं है जो एसटीईएम विषयों में अपनी ताकत दिखाए। वह अपने नागरिकों की निगरानी करने के मामले में भी बेहद कड़ाई बरतता है। यह बात अन्य वैज्ञानिक प्रगति वाले देशों के उलट है जो बौद्धिक संपदा और मानवाधिकार के मसलों पर बस जबानी जमाखर्च करते हैं। क्या एक अधिनायकवादी शासन में जो एक खास तरह के विचारों पर प्रतिबंध लगाता हो, वहां एसटीईएम संबंधी शोध फलफूल सकता है? चीन का भविष्य और भविष्य की दुनिया इस सवाल के जवाब पर निर्भर करेंगे।


सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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