बीएस संपादकीय
ब्रिटेन की पूर्व विदेश मंत्री मैरी एलिजाबेथ ट्रस, जो लिज के नाम से मशहूर हैं, 2016 में ब्रेक्सिट पर मतदान के बाद से वहां की चौथी प्रधानमंत्री बन गई हैं। भारतीय मूल के ऋषि सुनक को 20,927 मतों से हराकर वह अपने देश की तीसरी महिला प्रधानमंत्री बनी हैं। कंजरवेटिव पार्टी के ज्यादातर उम्रदराज और गोरे सदस्यों के बीच उनकी जीत तय मानी जा रही थी मगर उन्हें अपने बहुसांस्कृतिक देश में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी लोकप्रियता अभी साबित करनी होगी। उनसे पहले प्रधानमंत्री बनने वाले बोरिस जॉनसन और टरीजा मे ने पद संभालने के बाद समय पूर्व चुनाव करवाए थे लेकिन देखना होगा कि ट्रस भी ऐसा करती हैं या नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिटेन की जनता चुनावों से पहले ही उकताई हुई है और बोरिस जॉनसन के कार्यकाल की नीतिगत पंगुता के कारण तमाम बड़ी चुनौतियां उनके सामने हैं।
उनके सामने सबसे प्रमुख चुनौती है अर्थव्यवस्था की स्थिति को दुरुस्त करना और लोगों के जीवनयापन की लागत कम करना। जीवनयापन महंगा होने के कारण ही स्वास्थ्य सेवा, रेल एवं विश्वविद्यालय कर्मचारियों ने वेतन बढ़ाने की मांग के साथ हड़ताल की थी। ब्रेक्सिट पर बातचीत की नए सिरे से शुरुआत भी अधर में लटकी है। जी-10 देशों में ब्रिटेन सबसे ऊंची मुद्रास्फीति से जूझ रहा है और उसकी आर्थिक वृद्धि के पूर्वानुमान सबसे कमजोर हैं। इन वजहों से पाउंड को बुरी तरह झटका लगा है और रूस तथा यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के कारण चढ़ीं ऊर्जा की कीमतें और बढ़ीं तो पाउंड पर दबाव गहराता जाएगा। इसका नतीजा चालू खाते के घाटे में इजाफे के रूप में सामने आया है जो पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का 8.3 फीसदी रहा। एक विश्लेषण के अनुसार यह बढ़कर 10 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। उस स्थिति में ब्रिटेन किसी उभरते बाजार जैसे भुगतान संतुलन संकट का शिकार हो जाएगा।
अर्थव्यवस्था और व्यापार में स्थिरता नहीं आई तो ब्रिटेन शायद अपने बाहरी घाटे की भरपाई के लिए पर्याप्त विदेशी पूंजी नहीं जुटा पाएगा परंतु यह समझना मुश्किल है कि मार्गरेट थैचर की शैली में ट्रस की नीतिगत घोषणाएं तस्वीर में अहम बदलाव कैसे लाएंगी। अपने प्रचार में उन्होंने करों में कमी करने की बात की थी, जिससे देश में सबसे ज्यादा कमाने वालों को बेजा फायदा मिल जाएगा। उन्होंने घरों के बिजली के बिल बढ़ने से रोकने की बात भी कही, जिससे सरकारी खजाने पर करीब 100 अरब पाउंड का बोझ पड़ सकता है। उन्होंने आलोचकों की इस सलाह की अनदेखी कर दी कि इस प्रकार बिना लक्ष्य के खर्च से वृहद आर्थिक परिस्थितियां और भी बिगड़ सकती हैं। उनके विदेश मंत्री स्थगित रही ब्रेक्सिट की वार्ता और यूरोपीय संघ से मशविरा किए बगैर उत्तरी आयरलैंड व्यापार संधि में बदलाव करने से पैदा हुआ तनाव निवेशकों के अविश्वास को इतनी आसानी से शायद ही दूर कर पाएगा। ये समस्याएं खत्म करना जरूरी है क्योंकि यूरोपीय संघ ब्रिटेन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और ब्रेक्सिट के बाद से ही दोनों के बीच व्यापार में काफी कम हुआ है। ब्रिटेन के दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों के साथ सार्थक मुक्त व्यापार को अभी फलीभूत होना है।
चूंकि उनके देश में इतनी अधिक समस्याएं चल रही हैं, इसलिए यह भी स्पष्ट नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री रहते हुए ट्रस ने भारत के साथ व्यापार समझौता दीवाली तक पूरा करने का जो वादा किया था, उसे भी वह पूरा कर पाएंगी या नहीं। उन्होंने भारत के साथ सामरिक और आर्थिक रिश्तों को वैश्विक व्यापारिक गुणा-गणित का सबसे वांछित हिस्सा करार दिया था। गत वर्ष उन्होंने भारत-ब्रिटेन परिष्कृत व्यापार साझेदारी पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके बाद हालिया वार्ता शुरू हो सकीं। उन्होंने यह संकेत भी दिया था कि वह भारतीय पेशेवरों के लिए वीजा नियम आसान बना सकती हैं, जो पहले बड़ा गतिरोध था। परंतु उनके सामने जो वास्तविक चुनौतियां हैं, उनके कारण सदिच्छा भरे इन कदमों में देर हो सकती है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment