बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की चार दिवसीय यात्रा दोनों देशों के हितों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने कहा कि हमारा सबसे बड़ा मकसद अर्थव्यवस्था को विकसित करना और अपने लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना है। वर्ष 1971 के मुक्ति युद्ध को याद करते हुए उन्होंने न केवल भारत के योगदान को स्वीकार किया, बल्कि उसके लिए भारत का शुक्रिया भी किया। उन्होंने कहा कि 'मैत्री से आप कोई भी समस्या हल कर सकते हैं। और भारत हमेशा से हमारा एक अच्छा दोस्त रहा है।'
अगर दक्षिण एशिया के परिप्रेक्ष्य में हम देखें, तो बांग्लादेश के साथ हमारे रिश्ते बहुत करीबी हैं। इस समय यूक्रेन युद्ध, कोविड महामारी, कई देशों में मंदी और चीन की कर्ज कूटनीति की वजह से दक्षिण एशिया के देशों में खुद को बचाने की नीति चल रही है। एक समय जिस तरह ट्रंप ने ‘अमेरिका पहले’ की नीति अपनाई थी, उसी तरह सभी देश अपने हित को पहले देख रहे हैं। भारत और बांग्लादेश भी उससे अछूता नहीं है। इसी पृष्ठभूमि दोनों प्रधानमंत्रियों की द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बातचीत हुई।
बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का अब सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और द्विपक्षीय व्यापार 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यही नहीं, बांग्लादेश भारत का चौथा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी बन गया है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश को सबसे बड़ा विकास साझेदार बताते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार बहुत तेजी से बढ़ा है। दोनों देशों ने सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष एवं परमाणु क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का फैसला किया है और पावर ट्रांसमिशन लाइन पर दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है।
दोनों देशों के बीच सात समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। भारत-बांग्लादेश के बीच कुशियारा नदी के जल बंटवारे पर समझौता होना दोनों देशों के लिए सुखद है। इससे भारत में दक्षिणी असम और बांग्लादेश में सिलहट क्षेत्र को लाभ होगा। इसके अलावा दोनों देशों के बीच आतंकवाद और कट्टरवाद के खिलाफ सहयोग पर भी चर्चा हुई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों देशों को मिलकर उन आतंकी और चरमपंथी ताकतों का सामना करना चाहिए, जो दोनों देशों के परस्पर विश्वास पर हमले की धमकी देते हैं।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अमृत काल की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई सार्थक चर्चा का दोनों देशों के लोगों को लाभ होगा और हमने सभी बकाया मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है। हम तीस्ता मुद्दे के भी सर्वसम्मत हल की उम्मीद करते हैं। इतने मधुर और मजबूत रिश्ते होने के बावजूद हमें यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि बांग्लादेश के रिश्ते चीन के साथ भी हैं और चीन से उसने काफी कर्ज ले रखा है।
चीन बांग्लादेश में भी काफी निवेश करने में लगा हुआ है, जो भारत के हितों में नहीं है। हमें बांग्लादेश की मदद करने के साथ ही इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है, ताकि भविष्य में सुरक्षा संबंधी कोई परेशानी न हो। जहां तक आर्थिक मुद्दों की बात है, हमारे यहां से कॉटन बांग्लादेश जाता है और वहां उसे प्रसंस्कृत करके बांग्लादेश दुनिया भर में निर्यात करता है। कॉटन निर्यात में बांग्लादेश विश्व का दूसरे नंबर का देश है। इससे निश्चित रूप से भारत को नुकसान हुआ है।
अब तक बांग्लादेश को भारतीय बाजार में जितनी पहुंच मिली हुई है, उसे आगे बढ़ाना भारत के हित में नहीं होगा। इस समय दोनों देशों के बीच सबसे ज्यादा संभावना भारत की मुख्यभूमि और पूर्वोत्तर भारत के इलाकों के बीच बांग्लादेश से होकर कनेक्टिविटी (संपर्क मार्ग) के क्षेत्र में है। चाहे मल्टीमॉडल हो, चाहे जलमार्ग हो, चाहे सड़क संपर्क हो, चाहे रेल संपर्क हो, इन सबमें बांग्लादेश हमारी मदद कर सकता है और भारत की दिलचस्पी इसी में होनी चाहिए।
घरेलू स्तर पर राजनीतिक विरोध के कारण बांग्लादेश अभी तक इस मामले में हमारी ज्यादा मदद नहीं कर पा रहा था, लेकिन यदि इस क्षेत्र में वह सहयोग बढ़ता है, तो यह दोनों देशों के हित में होगा। इसके अलावा बांग्लादेश के पास जो गैस की उपलब्धता है या वहां जो ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है, उसे गैस पाइपलाइन के जरिये भारत से साझा किया जा सकता है। साथ ही पूर्वोत्तर भारत में जो गैस उपलब्धता है, उसे भी उस गैस पाइपलाइन के जरिये ट्रांसमिट किया जा सकता है।
इसी तरह से यदि म्यांमार से गैस पर सहमति बनती है, तो बांग्लादेश के रास्ते गैस पाइपलाइन के जरिये उसे भारत लाया जा सकता है। शेख हसीना की इस यात्रा का एक आयाम रोहिंग्या मुसलमानों से भी जुड़ा है, जो जटिल समस्या है। रोहिंग्या समस्या मूलतः बांग्लादेश की है, क्योंकि रोहिंग्या सबसे पहले बांग्लादेश का रुख करते हैं, फिर भारत की तरफ आते हैं। वे उसी इलाके से म्यांमार गए थे, जो आज का बांग्लादेश है। हालांकि म्यांमार के पास और भी मुस्लिम देश हैं, जैसे मलयेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनई, लेकिन वे बांग्लादेश या भारत ही आना चाहते हैं।
इसलिए जरूरी है कि इस मुद्दे पर चर्चा के लिए हम म्यांमार को भी साथ लें और इस समस्या का हल तलाशें। वैसे इस मुद्दे से द्विपक्षीय रिश्तों पर बहुत असर नहीं पड़ने वाला है। बांग्लादेश से हमारे यहां बहुत से घुसपैठिए आते हैं, खासकर मतदान के समय, मदरसा शिक्षा और मस्जिदें बनाने के लिए। और वे उन मदरसों में लोगों को आतंकी प्रशिक्षण देने की कोशिश करते हैं। बांग्लादेशियों को भारत में अवैध तरीके से घुसाने और भारत से पशुओं की तस्करी कर बांग्लादेश भेजने में बहुत से लोग संलिप्त हैं, जो कई बार पकड़े भी जाते हैं।
यह कई हजार करोड़ रुपये का कारोबार है, जिससे सुरक्षा की समस्या भी पैदा होती है। मौजूदा वैश्विक संकटों, चीन की आक्रामकता और कोविड महामारी के आर्थिक प्रभावों से उबरने के मौजूदा दौर में इन सब विषयों पर दक्षिण एशिया के देशों को आपसी सहयोग बढ़ाना चाहिए, ताकि हम अपने लोगों के हितों की रक्षा कर सकें। हमें बांग्लादेश की मदद जरूर करनी चाहिए, पर अपने हित का भी ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि भारत अगर उसे आर्थिक मदद करेगा भी, तो वह पैसा चीन का कर्ज चुकाने में खर्च हो जाएगा, जो हमारे हित में नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और अन्य देशों से बांग्लादेश को आर्थिक सहायता दिलाने में समर्थन करना एक अच्छा विकल्प रहेगा।
सौजन्य - अमर उजाला।
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